Friday, October 24, 2014

रोग, भोग और योग के आढ़तिये


रोग, भोग और योग के आढ़तिये


  • चारों तरफ़ गुरुओं की धूम मची है। हर विपणक के यहाँ योग से सम्बन्धित सामग्री बिक रही है। चारों ओर आढ़त का बाजार लगा है। लोग योग बेच रहे हैं  कुछ अन्य लोग योग खरीद रहे हैं। कोई आसन बेच रहा है, कोई अच्छे वाले आसन ईजाद कर रहा है। कोई ध्यान के सस्ते दाम लगा रहा है। किसी दुकान पर कुण्डलिनी उठवाई जा रही है।
  • कुछ लोग प्राणायाम बेच रहे हैं। बता रहे हैं कि माल अच्छा है, साथ में गारन्टी दे रहे हैं कि मोटापा कम कर देगा। इस ध्यान- योग के बाजार में कुछ दुकानों पर एक्सेसरीज़ भी बिक रही है।
  • ज्यादा भीड़ उन दुकानों पर है जहाँ एक्सेसरीज़ या तो हर्बल है या फिर उन्हें आयुर्वेद में से कहीं से आया बताया जा रहा है। पूरे बाजार  में चहल पहल है। चतुर सुजान, उत्तम वस्त्र पहनकर दुकानों के काउन्टर पर विराजे हुए हैं। मुद्राओं को रेशमी थैलियों में बन्द करके नीचे सरका रहे हैं।
  • जब योगसूत्र रचा गया था । पातंजलि के सामने कैलोरी बर्न की समस्या नहीं थी जबकि आज की मुख्य समस्या ही कैलोरी बर्न की है। पातंजलि के साधक के सामने कुण्ठा और आत्मरोध की वह घातक स्थिति नहीं थी जो आज के मनुष्य के सामने बॉस की डांट, बच्चों के एडमिशन, पुलिस की हेकड़ी, काम के दबाव, गलाकाट कम्पीटीशन आदि ने पैदा कर दी है। आज एल्कोहलिकों की तर्ज़ पर वर्कोहलिक पैदा हो रहे हैं। ये सब पातंजलि और योगसूत्र के लिए अज्ञात थीं अतः योगसूत्र के भीतर इनका निदान भी संभव नहीं है।


रोग, भोग और योग के आढ़तिये

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HOMEOPATHIC TREATMENT OF EBOLA VIRUS DISEASE

HOMEOPATHIC TREATMENT OF EBOLA VIRUS DISEASE


  • Ebola is a disease of humans and other mammals caused by an Ebola virus.
  • The symptoms start appearing two days to three weeks after getting the infection of this virus.
  • Its immediate symptoms are fever, sore throat, muscle pain and headaches.
  • Around this time, affected people may begin to bleed both within the body and externally. This is called internal and external hemorrhage.
  • Death, if it occurs, is typically 6 to 16 days from the start of symptoms and often due to low blood pressure from fluid loss.




BUT DON’T BE SCARED, HOMEOPATHY HAS THE ANSWER

The first treatment is likely to be given with the help of ARSENICUM ALBUM and ACONITUM.
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Sunday, August 3, 2014

मोदी का Niche Market प्रयोग

मोदी का Niche Market प्रयोग

 

1984 में काँग्रेस ने एक क्लीन स्वीप मैन्डेट प्राप्त किया था और भाजपा को मात्र दो सीटें मिलीं थी। तब लोगों ने भाजपा के खत्म हो जाने की बात की थी। लेकिन श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे एक अन्य प्रकार से परिभाषित किया था। उन्होंने कहा था कि भाजपा ने सौ से अधिक स्थानों पर दूसरा स्थान प्राप्त किया है जो उसकी क्षमताओं और भविष्य के सुनहरेपन की ओर संकेत करता है। उनकी यह बात इतिहास में सच साबित हुई भी है। राजनीति में कई बार मरिचिकाएँ पैदा होती हैं। होता कुछ है तथा दिखाई कुछ और देता है।

1984 जैसा ही कुछ तीस बरसों के बाद 2014 में हुआ हालाँकि यह बिल्कुल भिन्न कारणों से हुआ। 1984 में यह स्वर्गीय श्रीमति गाँधी के प्रति सहानुभूति से पैदा हुआ था और 2014 में यह श्री मोदी के करिश्मे से हुआ है। एक दल और उसके गठबँधन को लोगों ने सिर आँखों पर बैठा लिया है और ऐसा लग रहा है कि अन्य सभी दल राजनीतिक भू-दृश्य के पिछवाड़े में फैंक दिये गये हैं। काँग्रेस को पहली बार 50 से भी कम सीटें मिलीं हैं। पूरा उत्तर प्रदेश भगवा हो गया है। इस रणभूमि के दो जाने माने यौद्धा – सपा और बसपा, खून से लथपथ पड़े दिख रहे हैं। प्रथम दृष्टया उत्तर प्रदेश से गैर-भाजपा राजनीति का विलोप हो गया लगता है। यही सामने बोर्ड पर लिखा संदेश दिखाई पड़ता है। प्रश्न है कि यह संदेश सच्चाई है या केवल आँखों का धोखा मात्र है। यह राजनीतिक सच्चाई है यह यह भी कोई दोपहरी वाली मरीचिका ही है जिसके नीचे या पीछे कुछ अलग तरह का सच है। इसके गंभीर विवेचन की आवश्यकता है। आओ देखें।

सबसे पहले 2014 के रंगमंच को निहारते हैं तो काँग्रेस अपने पुराने नारे (गरीबी हटाओ) के एक नए संस्करण के साथ खड़ी है और हाथों में उसने – खाद्य सुरक्षा बिल थाम रखा है। मोदी विकास वाद की हुँकार भर रहे हैं। गुजराती गवर्नेंस का मुकुट भी उन्होंने पहन रखा है। समाजवादी पार्टी अपने सामाजिक समरसता वाले विचारों और अपनी सरकारी उपलब्धियों की किताब के पाठ सुनाती पड़ रही है। एक अन्य तरफ़ बहनजी अपने नीले रथ पर सवार हैं। लेकिन उनके अस्त्र शस्त्र वही परमपरागत पहचान वाले लग रहे हैं जो पिछले चुनावी रण में भी इस्तेमाल किये गये थे।

इस बार इस चुनाव को मोदी ने अपनी शर्तों पर लड़ा है। इस बार के चुनाव में यह बात मोदी ने तय की कि इस चुनाव की कसौटी क्या होनी चाहिए और फिर उस कसौटी पर खुद को सफल दिखा दिया। मोदी ही तय कर रहे थे कि कौन सा नायक इस चुनाव 2014 की पटकथा में क्या भूमिका निभाएगा? मोदी के इतर किसी व्यक्ति या दल का यह पता ही नहीं था कि किया क्या जा रहा था? और जब तक उन्हें पता लग पाता तब तक चुनावी नतीजे आ चुके थे। कुछ गंभीर विश्लेषक तक यहाँ तक कहते हैं कि न सिर्फ अन्य विपक्षी दलों बल्कि जनता तक को पता नहीं चला कि इस चुनाव में वस्तुतः हो क्या रहा था? इस चक्रव्यूह का लाभ यह हुआ कि ना तो विपक्षी दल इसका हल ढूँढ पाए और ना ही मोदी के खिलाफ कोई प्रभावी वार कर पाए।

अब इस सारी तकनीक को सरल रूप में समझते हैं। अंग्रेजी में नॉर्डिक मूल का एक शब्द है – निच् (Niche)। जब इसे बाजार प्रणाली के संदर्भ में इस्तेमाल किया जाता है तो यह कहलाता है निच् मार्केट (Niche Market)। इसे प्रयोग के द्वारा समझना आसान रहेगा। उदाहरणार्थ बाजार में दस फूड सप्लीमैंट्स हैं जो बालकों को प्रचुर कैलशियम उपलब्ध करवाने का दावा करते हैं। दसों फूड सप्लीमैंट्स में बिक्री के लिए घमासान मचा हुआ है। प्रचार पर भारी पैसा खर्चा किया जा रहा है। अचानक एक फूड सप्लीमैंट का निर्माता जनता को कहना शुरू करता है कि उसके सप्लीमैंट में एक ऐसा साल्ट भी है जो सप्लीमैंट वाले कैलशियम को शरीर तक पहुँचाता है। बिना साल्ट वाला कैलशियम किसी मतलब का नहीं है। वह यूँ ही शरीर से बाहर फेंक दिया जाएगा। साल्ट के बिना कैल्शियम तो बस मिट्टी जैसा है। अब उपभोक्ता सब कुछ भूलकर साल्ट वाले कैलशियम को खरीदने के लिए दौड़ पड़ते हैं। साल्ट वाला सप्लीमैंट बाजी मार लेता है। शेष सप्लीमैंट समान गुणवत्ता के होते हुए भी पीछे रह जाते हैं।

इस उदाहरण वाली बाजार प्रणाली में न सिर्फ प्रोडक्ट बेचा जा रहा है बल्कि एक ऐसी कसौटी भी साथ दी जा रही है जिस पर उस उत्पाद को कसा जाएगा। सामान्य नियमों के तहत् यह कसौटी उपभोक्ता की खुद की होनी चाहिए परन्तु बाजार की चतुराई यह है कि प्रोडक्ट का निर्माता स्वयं ही इस कसौटी को रच कर उपभोक्ता को थमा देता है। अब प्रोडक्ट भी उसी का है और प्रोडक्ट को जाँचने की कसौटी भी उसी निर्माता की है। अतः अब लाभ भी निश्चित ही उसी का हो जाता है। चुनाव 2014 में यही मोदी ने भी किया है।

राजनीति में इस निच् मार्केट का यह पहला प्रयोग नहीं है। श्रीमति इन्दिरा गाँधी – गरीबी हटाओ का सफल निच् मार्केट प्रयोग 70 के दशक में कर चुकी हैं। कुछ पहले 2013 में श्री केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में यही प्रयोग किया था। वहाँ उनका निच् था – भ्रष्टाचार उन्मूलन। केजरीवाल के पास भ्रष्टाचार उन्मूलन का कोई धवल रिकार्ड नहीं था बस जोरदार अन्ना आन्दोलन के सहारे उन्होंने सफलता पूर्वक यह दिखा दिया कि पूरी दिल्ली में केवल वही भ्रष्टाचार उन्मूलन कर सकते हैं। हालाँकि विधानसभा जीतने के बाद उन्होंने अपने निच् मार्केट में कुछ डाइल्यूशन किया। समाज-सुधार व साम्प्रदायिकता आदि मुद्दे जोड़ दिये। अनुभव कम था सो लोकसभा जीतने की जल्दबाजी में वो यह नहीं देख पाए कि साम्प्रदायिकता मुद्दे के उनसे बड़े राजनीतिक व्यापारी तो चुनावी बाजार में उनसे पहले से ही मौजूद थे। निच् मार्केट के डाइल्यूशन और कुछेक अन्य कारणों ने केजरीवाल को लुप्तप्रायः प्रजातियों की श्रेणी में लाकर रख दिया।

मोदी का निच् मार्केट था – विकास। इसे उन्होंने कुछेक सहायक सब- निच् मार्केट (Sub Niche Market) प्रत्ययों जैसे सबका विकास सबका साथ, भारतीय गौरव, सरकारी अकर्मण्यता के प्रति रोष आदि के साथ जोड़ दिया। और कमाल हो गया। विरोधियों को सूझा ही नहीं कि साम्प्रदायिकता आदि को लेकर जिस मोदी विरोध की तैयारी उन्होंने कर रखी थी और जो अब अचानक भोथरे हो गए थे उनका क्या किया जाए ?  और जब तक विपक्ष इस किंकर्त्तव्यविमूढ़ता से बाहर आता तब तक चुनाव खत्म हो चुके थे। इस नई व्यवस्था में चहुँ ओर मोदी ही मोदी हैं।

तो क्या यह राजनीतिक अवसान शुरू हो चुका है ? क्या भारतीय राजनीति अपने चरम् विकास को प्राप्त कर चुकी है ? क्या भारत में राजनीति समाप्त होने वाली है ?

भारत में सामाजिक विषमताओं का इतिहास रहा है। इसीलिये 1929 के रावी सम्मेलन में नेहरू जी को अपने समाजवादी सरोकारों को स्वीकार करना पड़ा था। भारतीय चुनावों में कांग्रेस की चरम विजय गाथाओं के बावजूद किसी ना किसी रूप में समाजवादी आंदोलन भारत में एक अनिवार्यता बनी रही। वर्तमान में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी उसी समाजवादी आंदोलन के विकसित रूप हैं।

विकास की जिस अवधारणा को मोदी जी अवतरित करना चाहते हैं वह मूल स्वरूप में लगभग वही है जिसे नरसिंह राव सरकार ने शुरू किया था और मनमोहन सरकार ने जिसे पाला पोसा था। अब तक जिन सुधारों की बात मोदी जी ने की है वे केवल कॉस्मैटिक सुधार हैं। मोदी द्वारा प्रतिपादित सुधार नरसिंह-मनमोहन सिद्धाँत से आमूल चूल भिन्न नहीं हैं। मनमोहन सिंह के लिये अस्वीकार्यता और मोदी की स्वीकार्यता के बीच केवल बालिश्त भर का ही अंतर है। इस सिद्धाँत का प्रतिछोर अभी भी सामाजिक न्याय का सिद्धाँत है जो आज के समय में भी केवल सपा और बसपा ने ही थाम रखा है। यदि मोदी का विकास इस देश का सपना है तो सामाजिक न्याय यहाँ की हकीकत है। जिस समय भी आप नींद की खुमारी से बाहर आएंगे तो हकीकत की जमीन पर ही खड़ा होना होगा।

सामाजिक न्याय को हकीकत कहने का अर्थ यह नहीं कि नेहरू जी के प्रजातान्त्रिक समाजवाद को पुनर्जीवित किया जाए या आचार्य नरेन्द्र देव के किसी नए अवतार को खोजा जाए। इतिहासों में दोहराए जाने की सुविधा नहीं होती। यहाँ सदैव नूतनता ही फलती है। पुराने को मिटना होता है। समाजवाद की पारम्परिक अवधारणा में मुफ्त राशन और सस्ते राशन की सुविधाओं की बात की जाती थी अब उतने से काम नहीं चलने वाला है। सामाजिक न्याय की नई अवधारणा में भी राशन की पूरी मात्रा या मिट्टी के तेल की सुविधा के बजाय आधुनिक सोच की जैसे – समाज के अंतिम व्यक्ति को बेजा कराधान से मुक्ति, इंस्पेक्टरों के कहर से सुरक्षा, नए सॉफ्टवेयरों के विकास का ढाँचा आदि को विकसित करना होगा। विचार को मुफ्त लैपटॉप वितरण से भी आगे सुगम इलेक्ट्रॉनिक विकास का सोचना होगा। जैसे जैसे समय आगे बढ़ता है सामाजिक न्याय की अवधारणा भी अपने अर्थों में विकसित होती है। और इसे होना भी चाहिए। ताकि विकास एक लुभावने नारे की परिधि से बाहर निकल कर सामाजिक न्याय की अवधारणा का ही एक आयाम बन जाए। जिस दिन ऐसा हो पाएगा इक्कीसवीं सदी का सामाजिक न्याय मूर्तिमान होकर हकीकत बन जाएगा।

लोकतंत्र में केवल दो ही प्रकार के समय होते हैं। पहला चुनावों का समय और दूसरा चुनावों की तैयारी का समय। मोदी ने इस सिद्धाँत को समझा। भीषण तैयारी की और चुनाव जीत गये। फिलहाल यह चुनाव तैयारी का समय है। अब देखना यह है कि कितने लोग या दल इस सिद्धाँत को समझ कर चुनाव की तैयारी के समय का सदुपयोग कर पाते हैं ताकि चुनाव समय पर वे  अपनी सीटें जीतते हुए खुशी महसूस कर पाएँ।

Monday, June 9, 2014

कालाधन सिर्फ काला नहीं होता

कालाधन सिर्फ काला नहीं होता




जो भी धन स्थापित व्यवस्थाओं के उल्लंघन से हासिल किया जाता है वही काला धन होता है। सरल शब्दों में कहें तो बिना टैक्स चुकाए जो धन सरकार से छिपाया जाता है वह काला धन होता है।

जब सरकार की नीतियाँ अस्थिर, शोषणकारी और दमनपूर्ण होंगी और उसके साधन हर स्थान पर उपलब्ध नहीं होंगे तो जनता का सक्षम वर्ग भविष्य की सुरक्षा के लिए अपनी आय को छुपा लेता है और काले धन का निर्माण करता है। ऐसा भी संभव है कि आय उन साधनों से हुई हो जिन्हें सरकार ने प्रतिबंधित किया हुआ है। जैसेकि प्रतिबंधित वस्तुओं की बिक्री करके या घूस आदि लेकर।

काले धन के कई प्रकार हैं।
·       आम लोगों का काला धन
·       उद्योगपतियों का काला धन
·       राजनेताओं का काला धन
·       ब्यूरोक्रेट्स का काला धन
1.     आम लोग अपनी घोषित कमाई के अलावा भी एकाध काम जैसे – सुबह अखबार बेचकर, लिफाफे बना कर, छोटी मोटी मशीनें लगा कर, कोई टॉफी-बिस्कुट की दुकान खोलकर आदि करके कुछ कमाई कर लेते हैं और सरकार से छुपा लेते हैं। इस धन का मुख्य उद्देशय अपने सामाजिक भविष्य को सुरक्षित करना होता है। आकार में यह कालाधन इतना सूक्ष्म है कि सरकारें इस पर आमतौर से विचार भी नहीं करतीं।
2.     उद्योगपति अपने उद्योगों से होने वाली कमाई का पूरा ब्यौरा ना देकर कुछ काला धन कमाते हैं। कई बार इसका आकार बहुत बड़ा भी हो सकता है। उद्योगपति को इस कालेधन की जरूरत सरकारी बाबूओं, अधिकारियों और मजदूर नेताओं आदि की जरूरतें पूरी करने के लिये होती है।
a.      किसी उद्योगपति के पास कुछ काला होता है तो वह उसका इस्तेमाल नया उद्योग खड़ा करने में करता है जिससे अधिक उत्पादन और रोजगार पैद होता है। भारत जैसी अधकचरी अर्थव्यवस्थाओं में यदि ऐसे काले धन को समाप्त किया गया तो यह उद्योगों के लिये ही विनाशकारी होगा। उद्योग तबाह हो जाएँगे। इस काले धन को समाप्त नहीं किया जा सकता।
3.     कालेधन का एक अन्य प्रकार राजनेता के पास होता है। कई राजनेताओं को राजनीति में बचे रहने के लिए अनेक ऐसे जनकल्याणकारी कार्य करने होते हैं जिनके लिए सरकार से कोई धन प्राप्त नहीं होता। बाहरी दिल्ली का एक प्रसिद्ध युवा नेता अपने व्यक्तिगत पैसे से एक हजार के लगभग वृद्धाओं को मासिक पेंशन देता है।
a.      राजनेताओं का कालाधन एक बुरे काम के लिए भी इस्तेमाल होता है। यह राजनीतिक अस्थिरता और कानूनी अराजकता के लिए भी प्रयोग किया जाता है। उस अवस्था में यह देश-समाज के लिए नुकसानदेह होता है।
b.     राजनेताओं के काले धन के बहुमुखी इस्तेमाल की संभावनाओं के मद्देनज़र इसे पूरी तरह नष्ट करने की सोचना उचित नहीं होगा। राजनेताओं के कालेधन को नष्ट करने की बजाय इसे रेगुलेट करने की सोचनी चाहिए। इसे नियंत्रित किया जाना चाहिए।
4.     सबसे बुरा कालाधन ब्यूरोक्रेट्स का कालाधन होता है। यह धन आम आदमी के शोषण से पैदा होता है। ब्यूरोक्रेट्स का काला धन आम जनता की परचेजिंग पावर को घटा कर पैदा किया जाता है अतः यह बाजार के खिलाफ काम करता है। दूसरा यह उत्पादन को बढ़ाए विना ही बाजार में (काला)धन झोंक देता है अतः महँगाई को बढ़ाता है। यह ही वह कालाधन है जो स्विस बैंकों की पासबुकों के पृष्ठ सँख्याओं को बढ़ाता है। यही वह कालाधन है जिसको बढ़ाने के लिए बाबू और अधिकारी मिलकर आम जनता के कामों को रोकते हैं और कानूनों की अबूझ पेचीदगियाँ पैदा करते हैं। यह ही वह धन जिसकी मात्रा अकूत होती है। आम आदमी इसी काले धन से त्रस्त होता है। इसी पर लगाम लगाए जाने की जरूरत है।


कालेधन की समस्या पर काम करने के लिए सरकार को अपनी सोच स्पष्ट करनी होगी- कौन सा कालाधन? वह क्यों पैदा होता है? उसे पैदा करने में वर्तमान व्यवस्था के कौन से तत्त्व जिम्मेदार हैं? पूरी व्यवस्था में कौन से सुधार दरकार हैं जिनके बाद कालेधन की जरूरत ही ना रहे? इन सभी आधारों पर सोचकर ही कालेधन पर कुछ युक्तिसँगत कहा जा सकेगा।

इसी दिशा में एक सुझाव यह भी है जितना संभव हो कालाधन अनुमोदित, नियंत्रित या प्रतिवंधित किया जाए और शेष कालाधन जिस पर किसी भी प्रकार का कानूनी आचरण संभव नहीं है उसका राजनीतिक-सामाजिक उपयोग किया जाए। एक ऐसे कोष की संभावना पर विचार किया जा सकता है जो लगभग स्विस बैंको की तर्ज पर हो और जिसमें जमा करवाए गये धन के स्रोत के विषय में कभी भी ना पूछे जाने की गारँटी दी जाए। ऐसे अज्ञात-स्रोत वाले धन के स्वामियों को ब्याज ना दिया जाए बल्कि एक बहुत मामूली सी राशि उनके धन को हिफ़ाजत के साथ सुरक्षित रखनें के लिए उनसे ही ले ली जाए। बस सरकारी नियँत्रण इतना ही हो कि ऐसे जमाकर्ता एक निश्चित समय जैसे एक या दो वर्ष तक उस रकम को खाते में बनाए रखने का वचन दें ताकि सरकार के पास उस धन का एक निरंतर प्रवाह और निवेश बना रहे।

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Monday, March 3, 2014

An Amazing Case of Blood Pressure

An Amazing Case of Blood Pressure


The patient was a judge by profession; aged about 50 years.

He was having blood pressure for about last 30 years.

He is plethoric in appearance but this plethora was not flabbiness. He is more muscular and solid. He appears to be quite calm and peaceful. His cholesterol is 225+ and LDL is 140+. His blood sugar is presently 170+. His normal blood pressure goes up to 160+/120+ and pulse 120.

For Blood sugar he was given daily 10 drops of a mixture of (Syzygium, Cephalandra and Gymnema Sylvestra) in half cup of water. The problem of diabetes was sorted out.

Keeping in view his life style, his silent personality and a tendency to stick to his honesty doses of Aur Met was given. It always ended in an aggravation.

Nux Vom was partially effective along with partial reliefs from Bry and Alum. A cumulative effect was reduction in the requirement of Amlopress AT and Telma.

One dose of Merc 10M and subsequently Arg Nit 10M completely changed the perspiring skin and aggravation from heat. The patient now was a chilly patient. For last one year he never complained of the heat. He always felt a need of warmth around him.

One day the whole course was changed.

During a personal discussion, about 20 days back he opened him how he was helpless against the court-administration, court-system of administering law, the police system, his seniors and even his juniors.

He told that he was just a face of the system but was quite vulnerable to the adversaries. He disclosed that he was just a component of a big show where the power is not exercised but rather it flows.

This gave me hint of rubrics:

Plumbum Concepts Jan Scholten

Empty Weak Leadership Management
Diverting Responsible
Indifferent King
Formal Distant Dignified Haughty
Covering up Alone Isolation

On these rubrics I got an idea and one dose of Plb 200 was given. He got an unprecedented relief in his anxiety and feeling in nape of neck, temples and occiput. For next 4 days he did not need any BP medicines. On 5th day he asked for I dose of Amlopress AT and Telma. It was given. After a few hours a second dose of Plb 200 was given. 6 days have passed since then and no need of BP medicines was felt by the patient.


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Thursday, February 20, 2014

महापुरुषत्व खोजता एक बेचैन फ़कीर

महापुरुषत्व खोजता एक बेचैन फ़कीर


यह बहुत अधिक रहस्य नहीं है कि महापुरुषत्व क्या होता है देशकाल की परीक्षा में खरा उतरने पर स्वयँ इतिहास उन्हें यह विरुद सौंप देता है।

अपनी जिद के आधार पर यह महापुरुषत्व कभी नहीं छीना जा सकता है। न लालू यादव ऐसा कर पाए और न ही अरविन्द केजरीवाल इसमें सफल होते दिख रहे हैं। आज की विचार मीमाँसा में देखते हैं कि क्या कोई अन्य ऐसा कर सकेगा?

अन्ना हजारे रालेगण सिद्दी में महाराष्ट्र में धरने दिया करते थे। उनके शब्दों में वे आन्दोलन किया करते थे।

पिछले दिनों उन्होंने “साड्डा हक़ एत्थे रख” के अन्दाज़ में यह भी दिखाने की कोशिश की है कि यदि समाज उन्हें महापुरुषत्व नहीं देता है तो वे इसे बलपूर्वक ले लेने का दम भी रखते हैं।

आओ विवेचन करें।

अन्ना एक मध्यम स्तर की शिक्षा पाए हुए पूर्व सैनिक हैं। उनकी वीरता पर प्रश्न नहीं उठा रहे हैं परन्तु उनका ज्ञानमीमाँसक पक्ष हमेशा सबूतों का अभाव झेलता रहा। जब शरद पवार पर किसी दुस्साहसी लड़के ने हाथ उठाया तब श्री अन्ना ने पहला प्रश्न यही पूछा था कि क्या एक ही मारा?

उन्होंने जनता से कहा कि उन्होंने अरविन्द केजरीवाल जैसा जुझारू समाजसेवी दिया है लिहाजा उन्हें महात्मा गाँधी द्वितीय माना जाए और केजरीवाल से कहा कि उन्होंने केजरी को समाज में स्थापित किया है अतः उन्हें चाणक्य द्वितीय माना जाए।

उधर केजरीवाल के पराक्रम और हस्तलाघव से अन्ना घायल से हो गए। उन्हें नेपथ्य में जाना अखरने लगा। तब उन्होंने रालेगण सिद्दी द्वितीय शुरू किया। राहुल गाँधी की प्रशँसा की और केजरीवाल के एक सरदार गोपाल राय को डाँट लगाई। कुछ दिन अखबार में छपे। लेकिन पर्याप्त नहीं छपे।

फिर दिल्ली आए। कहा कि केजरी सरकार को गिरवाकर भाजपा – काँग्रेस ने अपने पाँव में कुल्हाड़ी मारी है। अब तो केजरी के पचास विधायक दिल्ली में आएँगे। मगर केजरी उन दिनों बहुत व्यस्त थे और अन्ना को कोई प्रतिदान नहीं दे पाये।

लिहाजा अन्ना एक आखिरी जंग के लिए हावड़ा के किनारे पहुँच गये। ममता बैनर्जी के सिर पर हाथ रखने के लिए। वहाँ जाकर हाथ रखा भी। ममता को दिल्ली आने के लिए न्यौता भी दिया। माना जा रहा है कि ममता दिल्ली आएँगी और केजरी को सबक सिखाएँगीं। उस केजरी की यह मजाल कि मुझे – अपने गुरू को अनदेखा करे।

जनता हतप्रभ है। यह क्या हो रहा है? केजरीवाल, राहुल, पुनः केजरी और अब ममता – आखिर अन्ना किसे तलाश कर रहे हैं। वे इतने बेचैन क्यों हैं? वे क्या सिद्ध करना चाह रहे हैं? वे क्या पाना चाह रहे हैं? क्या वे इस भटकाव में अपने लिए एक वह महापुरुषत्व तलाश रहे हैं जिसे पाने में वे ऑलरेडी लेट हो चुके हैं? कस्तूरी मृग की तरह फिरते अन्ना को देखकर कुछ सुजान लोग पूछ रहे हैं कि महापुरुषत्व हथियाने का यह क्या उचित तरीका है? और अगर इस तरह से महापुरुषत्व यदि हथिया लिया भी जाता है तो बिना पात्रता के वह आखिर टिकेगा कितने दिन?

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Tuesday, February 18, 2014

Child Protection Laws

What is in POCSO Act 2012


The Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act 2012 is applicable to the whole of India. The POCSO Act 2012 defines a child as any person below the age of 18 years and provides protection to all children under the age of 18 years from sexual abuse.
This act suggests that any person, who has an apprehension that an offence is likely to be committed or has knowledge that an offence has been committed, has a mandatory obligation to report the matter i.e. media personnel, staff of hotel/ lodges, hospitals, clubs, studios, or photographic facilities.
Failure to report attracts punishment with imprisonment of up to six months or fine or both. It is now mandatory for police to register an FIR in all cases of child abuse. A child's statement can be recorded even at the child's residence or a place of his choice and should be preferably done by a female police officer not below the rank of sub-inspector.
The rules laid down in this act also had defined a criteria of awarding the compensations by the special court that includes loss of educational and employment opportunities along with disability, disease or pregnancy as the consequence of the abuse. This compensation would be awarded at the interim stage as well as after the trial ends.
Some of the child-friendly procedures which are envisaged under the POCSO Act are as follows:-

  • At night no child to be detained in the police station
  • The statement of the child to be recorded as spoken by the child
  • Frequent breaks for the child during trial
  • Child not to be called repeatedly to testify
The POCSO Act of 2012 looks into a support system for children through a friendly atmosphere in the criminal justice system with the existing machinery ie the CWC and the commission. The positive aspect is the appointment of the support person for the child who would assist during investigation, pretrial, trial and post trial.
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Sunday, February 2, 2014

AAP क्राँति – पराकाष्ठा से पराभव तक

AAP क्राँति – पराकाष्ठा से पराभव तक


  • ·         इस दुनिया में एक पूजक सँस्कृति है। वह पूजती है। पूजने का उसका अपना इतिहास है।
  • ·         उस सँस्कृति ने सब कुछ पूजा – उसने चूहा पूजा, शेर पूजा, बैल पूजा, गाय को पूजा, भैंसे को पूजा, वृक्ष को पूजा, दिशाओं को पूजा, हवा को पूजा, जल को पूजा, और अग्नि को पूजा।
  • ·         अब सबसे अँत में उसने दिव्य, हुतात्मा, वँदनीय, स्मरणीय, पापों का नाश करने वाले, दुखों को दूर करने वाले, ऋद्धि – सिद्धी के दाता, विद्याओं के जनक, तर्क आदि शास्त्रों के ज्ञाता अविनाशी देव केजरीवाल को पूजा।
  • ·         यह सँस्कृति जो भारत भूमि पर पाई जाती है गाँधी नाम के एक महात्मा को पूजती रही है और इसका लाभ कुछ दल लेते रहे हैं – इतिहास में ऐसे दलों को काँग्रेस नाम की संज्ञा से जाना गया है।
  • ·         यही सँस्कृति राम नामके एक अवतार को पूजती है और इसका लाभ कुछ अन्य दल लेते रहे हैं – इतिहास में ऐसे दलों को भाजपा नामक संज्ञा से जाना गया है।
  • ·         यह देख कर कुछ लोगों ने निश्चय किया कि चलो अब कुछ तूफानी हो जाए। उनके बीच में से उठ कर एक उत्तम पुरुष ने कहा कि इस बार वह पूज्य बनेगा।
  • ·         उसने कहा कि उसमें अनेक गुण हैं – वह अन्य सबसे उत्तम है, वह सबसे बेहतर विचारक है, सबसे बेहतर चिंतक है। उसने कहा कि अन्य सब प्रतीकों को भूल जाओ, वे पुराने पड़ गये हैं। पुराने प्रतीकों में जंग लग चुका है।
  • ·         उसने कहा कि वह अवतारों की लिस्ट में लेटेस्ट है। उसने अनके चारण रख छोड़े जो उसका निरन्तर कीर्तन किये जा रहे थे। ये चारण कभी ना थकते थे। इनसे कुछ भी पूछो ये केजरी-रासौ गाना शुरू कर देते थे।
  • ·         इस चारण मँडली ने बहुत गाना गाया। इन्होंने गा गाकर बताया कि सभी समस्याओं का हल प्रभू केजरी की लीलाओं में छिपा है। जल सम्बन्धी समस्या हो तो वह प्रभू केजरी की वँशी से ही ठीक होगी। विद्युत सम्वन्धी समस्या हो तो वह भगवान केजरी के आशीर्वाद से दूर होगी। उन चारणों ने गा गाकर बताया कि इसके अलावा महँगाई, भ्रष्टाचारण, घूसखोरी और पुलिस-प्रतारणा जैसी जितनी भी अन्य प्रेत-बाधाएँ हैं वे सब भी केजरी-भभूत लगाने से ही दूर होंगी।
  • ·         उस पूजक सँस्कृति को लगा कि किसी नये अवतार के अवतरित होने की वेला आ गई है।
  • ·         4 नवम्बर 2013 को इस नये अवतार ने इस मृत्यु लोक में अवतरित होने की ठानी। रेडियो और दूरदर्शन आदि पर घोषणाएँ की गईं कि अवतार ने जन्म ले लिया है।
  • ·         समस्त भू-लोक में मँगल-गान बजने लगे। शँख-ध्वनि से दिशाएँ गुँजायमान हो गईं। पूरी की पूरी सँस्कृति नृत्य से झूमने लगी। चारों दिशाओं में शुभ लक्षण दिख रहे थे।
  • ·         कुछ दिन तक तो ठीक चला। पर तभी लोगों ने देखा कि इस चमत्कारी बालक ने जो चक्र थाम रखा है वह दिव्य नहीं बल्कि चाईना शॉप से खरीदा हुआ पैंतीस रूपये वाला आइटम है। किसी ने खबर लीक कर दी कि ना केवल इसका चक्र बल्कि इसका शँख, इसकी मुरली, मोर मुकुट और यहाँ तक कि इसके मेक-अप की किट भी लाल किले के पीछे वाले चोर मार्केट से खरीद कर लाए गये हैं।
  • ·         यह भी अफवाह फैला दी गई कि जो चारण गण इस नये अवतार की वँदना गा रहे थे वे भी एक कॉन्ट्रैक्टर के पास से मँगवाए गए बाउन्सर्स हैं।
  • ·         इसके बाद पूजक सँस्कृति के सामने बड़े सवाल खड़े हो गये हैं।
  • ·         सबसे बड़ा सवाल यह है कि अब इस खण्डित देव-प्रतिमा का क्या करे? इसे कहाँ जल प्रवाहित करे?
  • ·         अँत में यही निर्णय लिया गया कि इस चाइनीज़ गुणों वाली क्राँति के कबाड़ को यदि चाईना वापिस नहीं लेता है तो इसकी पूँछ में रॉकेट बाँध कर होली के बाद इसे  चाँदीपुर से दाग दिया जाए। उसके बाद ये जिसके भी आँगन में पड़े ये उसकी मुसीबत। हमारे सिर से तो बला टल ही जाएगी।

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Tuesday, January 21, 2014

सत्य प्रति घंटा

सत्य प्रति घंटा

आपने सत्य के कई रूप देखे होंगे। दार्शनिकों से आपने सत्य के कई भेद भी जाने होंगे। कुछ लोग ऐसा भी कहते हैं कि एको सत् विप्रा बहुदा वदन्ति। मोहनदास नामके एक महात्मा ने एक सत्य के साथ किये गए अपने प्रयोगों को लेकर एक पुस्तक – माई एक्सपैरिमैन्टस विद ट्रुथ लिखी थी। यानी कि आपका साबका सत्य के विविध रूपों से रंगों से पड़ा होगा। परन्तु पिछले दिनों से एक विशिष्ट श्रेणी का सत्य दिल्ली की सड़कों पर घूमता देखा जाता है। यह है – सत्य प्रति घंटा।
… …
ऐसी ही एक कथा आजकल दिल्ली में बाँची जा रही है। यहाँ भी केजरीवाल नामक नया नायक अवतरित हुआ है। यह सदैव सही होता है। यह सदैव सत्य होता है।  और इनके सत्य भी इन्द्रधनुषी होते हैं। सुबह वाल सत्य। कल वाला सत्य। रामलीला ग्राउण्ड वाला सत्य। सचिवालय वाला सत्य। प्रातः 10 बजे वाला सत्य। 11 बजे वाला सत्य। शाम 7:30 बजे वाला सत्य। आदि आदि। कुछ लोगों ने पूछा कि इनका सत्य हर घँटा बदल क्यों जाता है। पहले कुछ कहते हैं बाद में कुछ कहते हैं परन्तु फिर भी दोनों सत्य। लोग चकित हैं कि ऐसा कैसे हो पाता है। तभी कुछ विद्वान सामने आते हैं। एक शायद कविता पढ़ते हैं। दूसरे शायद तड़ी मारते हैं। तीसरे बहुत विद्वान स्वरूप हैं। दाढ़ी रख छोड़ी है और बहुत शाँत भाव से मद्धिम स्वर में बात करते हैं।

कवि महोदय गा रहे हैं –
जिसने माँ का दूध पिया आकर जरा दिखाये
दाँत तोड़ दें, आँख फोड़ दें गूँगा उसे बनाएँ
ऐसी मार लगाएँ उसको वो पाछे पछताए

तड़ीमान महोदय उदघोष कर रहे हैं – अगर हमारे या नायक के सत्य पर प्रश्न उठाए गए तो प्रलय कर देंगे। हमें दिल्ली की जनता ने चुन लिया है हम अपराजेय हैं।  हमारे सत्य पर प्रश्न उठाने वाले लोग तैयार हो जाएँ हम आ रहे हैं। हम तुम सबके मुँह पर कालिख पोत देंगे। ... ...

तीसरे विद्वान स्वरूपा आत्मन शुरू करते हैं – सज्जनों आप सब जानते हैं। विश्व परिवर्तनशील है। हर पल बदलता है। हर कण हर क्षण बदलता है तो हमारे राजन का सत्य भी तो इसी दुनिया का सच्चा स्वरूप है। वह भी बदलता है। यह बड़ा साईंटिफिक भी है। आइंस्टीन ने स्पेस – टाईम की जिस सिंगुलैरिटी का ज़िक्र किया है वह यही तो है जो हमारे राजा बताते हैं। जैसे जैसे स्पेस – टाईम बदलता है उससे निकला सत्य भी बदलता है। जो अज्ञानी लोग इसे समझ नहीं पाते हैं मेरा सुझाव है कि वे लोग पहले आइंस्टीन की थ्योरी पढ़ लें उसके बाद ही मुझसे सवाल करें तो मेरे उत्तर समझ सकेंगें।

जनता अभिभूत है। क्या चौकड़ी है? कुछ भी साबित कर देते हैं। बल्कि सब कुछ कर देते हैं। अगर सामान्य लोगों को यह हुआ काम नहीं दिखता तो इसलिये कि वे काँग्रेस और भाजपा के झाँसे में आ गये हैं।

और इस प्रकार राजा ने अपना राज काज शुरू कर दिया है। हर एक घंटें एक नया सत्य नोटिस बोर्ड पर चिपका दिया जाता है। जनता इस नए सत्य प्रति घंटा से कहीं चौंधिया गई है और कहीं बौरा गई है। परन्तु क्या मज़ाल कि कोई सवाल पूछने की हिमाकत कर सके। जवाब देने के लिए वीर – चौकड़ी कहीं आसपास ही जमी हुई है।
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Tuesday, January 7, 2014

AAP को गाली मत दो ना!

AAP को गाली मत दो ना!!!

किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला तो धुर विरोधी दो दलों ने कुछ अभिनय किया, कुछ प्रहसन किये कुछ गालियाँ दीं और कुछ गालियाँ सुनीं। फिर गले मिले गए और दिल्ली में एक सरकार अवतरित हुई – AAP सरकार। काँग्रेस को प्रत्यक्ष सत्ता तो नहीं मिली पर सुकून बहुत मिला। उनकी चिर प्रतिद्वन्द्वी भाजपा सत्ता से दूर हो गई। और एक अन्य आशा भी काँग्रेस को मिली।
... ...
इस बार खेला थोड़ा सा अलग है। लगता है कि इस बार काँग्रेस पुनर्जीवन की कामना नहीं कर रही है बल्कि एक छायाप्रेत को जीवित कर रही है। एक ऐसा प्रेत जो उसे छोड़कर अन्य सभी को भस्म कर देगा। काँग्रेस को लग रहा है कि यह प्रेत पितृ ऋण से ओत प्रोत होने के कारण काँग्रेस को नुकसान नहीं पहुँचायेगा जबकि अन्य जो भी उसके सामने पड़ेगा वह छायाप्रेत उसे ही लील जाएगा। काँग्रेस को शायद लग रहा है कि आज के समय में AAP की पब्लिक इमेज उसका छायाप्रेत बन सकता है। यदि उसे पाला पोसा जाए तो यह प्रेत कल सब विरोधियों को खासकर भाजपा और मोदी को लील जाएगा। काँग्रेस गणना कर चुकी लगती है। यह प्रेत वही काँग्रेसी आशा है जिसकी चर्चा इस लेख के शुरू में किया गया था।

महाभारत युद्ध में जब अर्जुन भीष्म को पराजित करने में खुद को अक्षम पा रहे थे तो उन्होंने एक अन्य यौद्धा की आड़ लेकर भीष्म पर बाणों की वर्षा की और उन्हें जमीन पर गिरा दिया। क्या काँग्रेस भी भाजपा को पराजित करने में खुद को अक्षम पाते हुए एक आड़ तैयार कर रही है ताकि आगामी चुनावी महाभारत में भाजपा पर बाण वर्षा की जा सके? इस दृष्टिकोण से तो यह एक सटीक राजनीतिक गणना लगती है।

इस गणना के परिणामस्वरूप ही संभवतः आज हर टीवी शोज़ में, राजनीतिक चर्चाओं में, निजी बातचीत में, गोष्ठियों में सभी काँग्रेसी एक ही बात कह रहे हैं – AAP को गाली मत दो ना! काँग्रेस के बड़े नेता कह रहे हैं कि सब राजनीतिक दलों को – काँग्रेस को, भाजपा को और अन्य क्षेत्रीय दलों को AAP से सीखना चाहिये। वे लोग कह रहे हैं कि यदि सब दलों ने AAP से ना सीखा तो सब दल मिट जाएँगे। वे कह रहे हैं कि सब कुछ करो पर AAP की आलोचना ना करो।

सवाल है कि -

  • काँग्रेसी नेता आजकल काँग्रेस की अपेक्षा AAP की छवि सुधारने की कोशिश में क्यों जुटे हैं?
  • वे काँग्रेस के पुनरुत्थान की अपेक्षा AAP के उत्थान के लिये अधिक चिंतित क्यों हैं?
  • क्या लोगों का यह कयास ठीक है कि AAP वस्तुतः काँग्रेस की B टीम है?
  • क्या काँग्रेस इस बार प्रत्यक्ष सत्ता ना लेकर अपने प्रोक्सीज़ के द्वारा सत्ता पाना चाहते हैं जैसा कि उन्होंने दिल्ली में किया है?
  • क्या उनके तमाम राजनीतिक प्रयास अब अखिल भारतीय कठपुतली आयोजन बनकर रह गए हैं?


इन सब प्रशनों के उत्तर यदि काँग्रेस नहीं देगी तो जनता देने को उत्सुक हो जाएगी। बेशक कुछ माह पश्चात!

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