PS Malik speaks on: VIGYAN BHAIRAV – THE GATE (Hindi)
विज्ञानभैरव – एक मुक्ति द्वार
आज का समय सपनों का समय है। हर एक व्यक्ति ने एक स्वप्न पाल रखा है। वह व्यक्ति उस स्वप्न के पीछे पड़ा है। स्वप्न जागने और सोने के बीच का समय होता है। स्वप्न न तो पूरी तरह जागरण होता है और न पूरी तरह सुषुप्ति होता है। स्वप्न जागरण और सुषुप्ति का संक्रमण काल है। जागरण और सषुप्ति की सांध्यवेला को स्वप्न कहा गया है। यही स्वप्न की मोहकता है कि इसमें जागरण का यथार्थ और सुषुप्ति की मूर्छा दोनों नहीं हैं परन्तु जागरण की अनुभूति और सुषुप्ति की विश्रांति दोनों इसमें हैं।
आज मनुष्य का मन व्यथित है । वह आराम नहीं कर पाता है। मोबाईल की घंटी बजकर नींद तोड़ देती है। न बजे तो भी नींद नहीं आती कि पता नहीं क्यों नहीं बज रही है, इतनी देर में तो बहुत बार बज जाया करती थी । न घंटी बजने से चैन है और न ही न बजने से ।मन दुविधा से भरा है । नींद आ भी गई तो सो नहीं पा रहा है। सोते समय भी दफ़्तर, टैंडर, काऊन्टर, बॉस, टारगेट सब मौजूद हैं। स्वप्न में माल का ऑर्डर भिजवाया जा रहा है। मुनीम का चेहरा दिखाई दे रहा है। नींद उचट रही है। निद्रा मे जागरण घुस गया है। जब सोते समय सो नहीं पाया तो जागते समय जाग भी नहीं पाता है। अधूरी नींद लिये टारगेट पूरा करने के लिये दौड़ पड़ता है। टारगेट सोने नहीं देता है, नींद जागने नहीं देती है। सब कुछ घालमेल हो जाता है। आज का मनुष्य न जागता है न सोता है। जागने और सोने के बीच का स्थान स्वप्न का है। आज का मनुष्य स्वप्न में जीवित है। परन्तु यह स्वप्न यथार्थ और मूर्छा वाला है चेतना और विश्राँति वाला नहीं है।
ज्ञानी जन कहते हैं कि यह बाजार का कमाल है। बाजार ने मनुष्य का चैन छीन लिया है। राम और आराम - दोनों बाजार में गुम हो गये हैं। बाजार जहाँ कम्पीटीशन है, चालबाजी है, फ़रेब है और माया है। बाजार में पलंग तो दिखाई देता है पर नींद नहीं दिखती। मनोरंजन की टिकट तो मिलती है पर सुकून नहीं मिलता । बाजार में भोजन और स्वाद तो उपलब्ध हैं परन्तु तृप्ति नहीं मिलती। वासना की दुकानें तो हैं पर प्रेम का कोई ठीया नहीं मिलता । नींद, सुकून, तृप्ति, प्रेम, भक्ति – ये सब मनुष्य के लिये मनुष्य होने की शर्त हैं परन्तु ये सब बाजार में नहीं मिलते । सिर में राख डाले आज का मनुष्य इन्हें ढूँढता फिर रहा है। ढूँढ नहीं पाता है – यही उसकी समस्या है।
हल ढूँढने के दो रास्ते हैं। पहला योग का है जो कहता है कि बाजार छोड़ दो – आपको राम, आराम और शांति सब मिल जाएगा। विडम्बना है कि बाजार को छोड़ने का ‘काम सिखाने वाले’ अपनी अपनी दुकानें इसी बाजार में खोले बैठे हैं। किसी के काऊन्टर पर आसनों की तख्ती लगी है तो किसी के शो केस में प्राणायाम के कसरती रूप सजे धरे हैं।
दूसरा रास्ता बाजार से होकर जाता है। यह भैरव तंत्र का रास्ता है । आधुनिक विज्ञान इसे समझने में मदद कर सकता है। इसे समझने से पहले इसकी कार्यविधि समझनी जरूरी है। विज्ञान के अनुसार अस्तित्त्व द्विध्रुवीय (Bipolar) है। यहाँ कण है तो उसका प्रतिकण भी है। मैटर है तो एण्टीमैटर भी है। समस्त अस्तित्त्व को लील सकने वाला ब्लैक होल है तो अस्तित्त्व की उत्पत्ति करने वाला व्हाईट होल भी है। यहाँ भाव और अभाव का, मैटर और एण्टीमैटर का, प्रकाश और अँधकार का, धर्म और अधर्म का, पाप और पुण्य का साथ साथ अस्तित्त्व है। अस्तित्त्व और अनस्तित्त्व इस जगत में दोनों एक साथ हैं। विज्ञान कहता है कि यदि सारा अस्तित्त्व होल के एक सिरे (ब्लैक) पर अनस्तित्त्व हो जाता है तो होल के ही दूसरे सिरे (व्हाईट) पर अनस्तित्त्व से अस्तित्त्व भी उद्भूत होगा। ऐसा होता भी है। भैरव तंत्र कहता है कि यदि मनुष्य का स्व बाजार में कहीं विलीन हो गया है तो बाजार में ही वह अवतरित भी होगा। जागृति यदि बाजार में गुम हुई है तो बाजार ही उसे ढूँढने का उपाय भी होगा।
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Shreyas Malik
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